“दोस्ती- यादो की सवारी”

इत्काफ दोस्ती का है तो में
मुतसर में अपनी यारी बता रही हु
वरना ये उन्स की
बात ही कुछ ओर है.
सोच रही थी कब मिले थे हम
लेकिन वो याद आने से रहा
कुछ ओर बाते याद आ गई
लम्हा बहुत खुबसूरत है लेकिन
उससे ज्यादा उनका साथ होना
कितनी भी कोशिस कर लो लेकिन
ये ऐसी लत है
जो खुदा के चाहने पर भी नही छुट सकती
यारो की यारी है
जिसे देख कर चाँद भी शिकायत करता है
ना कोई रिश्ता, ना ही कोई मोहब्बत
ये तो हमारा तालुक है
सर दर्द की दुआ है
तो हर सुबह की मीठी चाय
रात के सपनों की सवारी
तो जीने के लिए एक उल्फत है
सुन महरम,
तेरे जुम्बिश की क्या बात करु!
ये तो सिर्फ छोटा सा
टुकड़ा हे धडी का
मेरी जिंदगी का उन्वान ही “दोस्ती” है.
मेरी किताब का पहला पन्ना “दोस्ती”
और आखरी पन्ना भी “दोस्ती” ही होगा.

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